देश का पहला स्टेशन जहां लोग ट्रेन पकड़ने से ज्यादा स्टेशन देखने को आते हैं, जानिए क्या है वजह

सूरत बदलने के लिए नियती चाहिए, संभव सब कुछ है बस सही तकनीकि चाहिए। जी हां तमाम लेखकों ने ऐसा दावा किया है कि इंसान ही वो शख्स है जिसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जब चाहता है, जिसको चाहता है, पा ही लेता है। ऐसा ही हुआ हैं, बिहार प्रदेश में। जहां कुछ लोगों की चाहत और मेहनत से कुछ ही दिनों में ऐसा कुछ बदला की जिसकी किसी को उम्मीद भी नहीं थी। चंद लोगों ने बीड़ा उठाया और वो कर दिखाया जिसको सरकार और प्रशासन करने में कई बार सोचता है। जी हां हम बात कर रहे हैं कुछ दिनों पहले तक वीरान और गंदगी से भरपूर मधुबनी स्टेशन की जो आज मेट्रों स्टेशनों को भी फेल कर रहा है।

अगर आपके से कोई कहे कि चलो दिल्ली का कोई स्टेशन घूमने चलते हैं, तो आपका जवाब होगा आखिर घूमने जाना है, तो स्टेशन पर क्यों, क्या खासियत है दिल्ली के स्टेशन में जो वहां घूमने जाना है। क्योंकि राजधानी दिल्ली का स्टेशन भी आम स्टेशनों की तरह ही है। जहां हजारों लोग अपनी ट्रेन पकड़ने के लिए निकलते हैं और स्टेशन की तरफ बिना ध्यान दिए चला जाता है। लेकिन बिहार का मधुबनी स्टेशन ने अपना ऐसा मेकअप कराया है कि आप जाने के बाद कभी भूल नहीं पाएंगे।

जो भी देखे देखता ही रहे

कभी भारत के गंदे स्टेशनों में शुमार इस स्टेशन का मेक ओवर गया है। इसे करीब 225 कलाकारों ने मिलकर तैयार किया है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल थीं। दीवारों और फुटओवर ब्रिज पर यहां की परंपरागत मधुबनी पेंटिंग बनाई गई है। दूर-दूर से लोग इस पेंटिंग को देखने आते हैं। इन कलाकारों ने दो महीने तक बिना वेतन के इस पेंटिंग पर काम किया।

बिहार के मधुबनी रेलवे स्टेशन में जब भी कोई ट्रेन रुकती है, लोग इसकी खूबसूरती निहारते रहते हैं। बीते साल अक्टबूर महीने में स्टेशन पर विश्व की सबसे बड़ी वॉल पेंटिंग तैयार की गई थी, जो करीब 7000 वर्ग फीट की थी, लेकिन दुर्भाग्य से यह गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल नहीं हो पाई थी।

रामायण काल के उतारे चित्र

मिथिला प्रदेश की शान और मधु यानी शहद सी मीठी वाणी के लिए जानी जाने वाली ये जगह बेहद ऐतिहासिक है। यहां की किरात, भार, थारु जैसी दूसरी जनजातियों में पेंटिंग का बेहद पुराना रिश्ता है। जिसे दुनिया मधुबनी पेंटिंग के नाम से जानती है। इसीलिए मधुबनी स्टेशन में पारंपरिक त्योहार, पर्यावरण, परिवार, महिला और खेत खलिहान, भगवान राम और गणेश के बेहद कलात्मक पेंटिंग बनाई गई हैं। जिनको लोग निहारते ही रहते हैं। पेंटिंग बनाने के ज्यादातर कलाकारों में महिलाएं शामिल थीं जिन्होने दो महीने में इस स्टेशन की सूरत ही बदल दी है।

इससे पहले यूपी में ‘मेरा स्टेशन मेरी शान’ प्रॉजेक्ट के तहत आगरा के राजा मंडी स्टेशन की दीवारों पर मॉडर्न आर्ट उकेरी गई थी। वहीं यहां रेलवे प्रशासन ने ललित कला संस्थान के छात्रों को भी इस प्रॉजेक्ट में शामिल किया था। छात्रों ने अपने हुनर से स्टेशन को आर्ट गैलरी में तब्दील कर दिया है। है। यहां ट्रेन का इंतजार कर रहे यात्रियों का समय पेंटिंग निहारते हुए अच्छा बीतता है।

विश्वप्रसिद्ध मधुबनी पेंटिंग्स से सजे रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म सहित लगभग आधा किलोमीटर के रेडियस में सीता जन्म, राम-सीता वाटिका मिलन, धनुष भंग, जयमाल, कृष्ण लीला, माखन चोरी, कलिया मर्दन, कृष्ण रास, राधा-कृष्ण प्रेमालाप, विद्यापति, ग्रामीण जीवन, मिथिला के लोक नृत्य व त्योहार सहित तकरीबन चार दर्जन विषयों पर बनी शानदार पेंटिंग ही नजर आती हैं। जिसने एक बार देखना शुरु किया वो फिर देखता ही रहता है।

कभी ऐसा था मधुबनी स्टेशन

अब जरा एक बार पुराने मधुबनी स्टेशन को भी देख लीजिए, जिसको देखकर आपको भरोसा भी नहीं होगा की ये ऐसा रहा होगा।

मधुबनी पेंटिंग्स का इतिहास पुराना है, मिथिलांचल में मांगलिक कार्यों के मौकों पर घर-आंगन में ऐसी पेंटिंग बनाई जाती रही हैं। जो दुनिया भर में प्रसिद्ध होती चली गई। मधुबनी पेंटिंग्स की वजह से पांच कलाकार पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं।

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